दोस्तों अयोध्या का राम मंदिर बनकर तैयार हो गया है। वो राम मंदिर जिसका सपना लगभग हर किसी ने देखा था। जब सुप्रीम कोर्ट से फैसला आया कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा तो भक्तों की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा और इसी के साथ राम मंदिर के इतिहास में 5 अगस्त 2020 का दिन सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया जिसदिन भगवान राम के मंदिर के लिए भूमि पूजन किया गया। लेकिन क्या आपको पता है? राम मंदिर का फैसला इतनी आसानी से नहीं आया है। इसके लिए राम मंदिर को बहुत सी चुनौतियों से गुजरना पड़ा है। तो आज के इस आर्टिकल में हम जानेगे कि, इस राम मंदिर का इतिहास क्या है? और ये भी जान लेंगे की? आखिर क्यों राम मंदिर पर हुए इतने विवाद?
9 नवंबर 2019 का वो दिन जब राम मंदिर के हक में फैसला आया और हर कोई खुशी से झूम उठा आखिर 134 साल बाद इस मसले का फैसला आया था और ये फैसला इतनी आसानी से नहीं लिया गया है। इसके लिए बहुत सी चुनौतियों से गुजरा था राम मंदिर।
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भगवान राम की अयोध्या से राम मंदिर बनने तक का सफर – राम मंदिर का इतिहास क्या है?
अयोध्या को भगवान राम के पूर्वज वैवस्वान के बेटे वैवस्वत मनु ने बसाया था। तभी से शहर पर सूर्यवंशी राजाओं का राज़ महाभारत काल तक रहा। यही पर दशरथ के महल में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। भगवान श्री राम के काल में अयोध्या काफी सुन्दर थी। इतनी सुन्दर थी कि इसकी तुलना स्वर्ग से की जाती थी। कहते हैं कि भगवान राम की जलसमाधि लेने के बाद अयोध्या कुछ समय के लिए बिखर सी गई थी, लेकिन उनकी जन्मभूमि पर बना महल वैसा का वैसा ही था। भगवान राम के बाद उनके बेटे कुश ने एक बार फिर से राजधानी अयोध्या का निर्माण कराया। इस निर्माण के बाद सूर्यवंशी की अगली 44 पीढ़ियों ने यहाँ पर राज़ किया।आखिरी राजा महाराजा बृहद्बल ने भी यहीं पर शासन किया। कौशलराज बृहद्बल की मृत्यु महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के हाथ हुई थी और महाभारत के युद्ध के बाद आयोध्या उजाड़ सी हो गयी और पौराणिक कथाओं के मुताबिक कौशलराज बृहद्बल की मृत्यु के बाद ये उल्लेख मिलता है कि ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य 1 दिन शिकार करते करते अयोध्या पहुँच गए थके होने के कारण वह अयोध्या में सरयू नदी के किनारे के पेड़ के नीचे अपनी सेना के साथ आराम करने लगे। उस समय वहाँ पर घना जंगल था और कोई बसावट भी नहीं थी। कथाओं के अनुसार महाराज विक्रमादित्य को इस जमीन पर कुछ चमत्कार दिखाई देने लगे तब उन्होंने ढूंढना शुरू किया। पास के योगी व संतों के जरिए उन्हें पता चला कि, ये श्रीराम की अवध भूमि है। संतों की बात मानकर ही सम्राट विक्रमादित्य ने यहाँ एक बड़े मन्दिर के साथ ही कुएं, तालाब और महल बनवाए। कहते हैं कि उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि पर काले रंग की कसौटी पत्थर वाले 84 खंभों पर एक बड़े मंदिर का निर्माण कराया था, जो की बहुत ज्यादा खूबसूरत था। विक्रमादित्य के बाद कई राजाओं ने समय समय पर इस मंदिर की देखरेख की। उन्हीं में से एक शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग ने भी मंदिर में सुधार कार्य करवाया था।
इसके बाद ईसा की ग्यारहवीं सदी में कन्नौज के राजा जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के इन्स्क्रिप्शन को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। इसके बाद पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया। फिर उसके बाद भारत देश पर मुगलों का आक्रमण बढ़ गया।आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्या कर मूर्तियों को तोड़ने का काम जारी रखा। उन्होंने पूरे देश में मूर्तियों को तोड़ मंदिरों को उजाड़ा, लेकिन 14 वीं सदी तक भी वे अयोध्या के राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए। (राम मंदिर का इतिहास क्या है?)
जब देश में जगह जगह बहुत से आक्रमण हो रहे थे तब उन्होंने सबको झेलते हुए श्रीराम की जन्मभूमि पर बना भव्य मंदिर।चौदहवीं सदी तक बचा रहा। ऐसा कहा जाता है कि सिकंदर लोधी के शासन काल के दौरान भी यहाँ मंदिर मौजूद था। 14 वीं शताब्दी में हिंदुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही राम जन्मभूमि अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए और आखिर में 1527-1528 में इस मंदिर को तोड़ दिया गया और उसकी जगह बाबरी मस्जिद का ढांचा खड़ा किया गया।
बाबरनामा के मुताबिक 1528 में अयोध्या पड़ाव के दौरान मस्जिद निर्माण के आदेश बाबर ने दिया था। तब मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के एक सेनापति ने बिहार अभियान के समय मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही। अयोध्या में बनाई गई मस्जिद में खोदे दो संदेशों से इसका संकेत भी मिलता है। इसमें एक पर कुछ संदेश लिखा हुआ था। जिसका मतलब है जन्नत तक जिसके न्याय के चर्चे हैं, ऐसे महान शासक बाबर के आदेश पर दयालु मीर वकी ने, फरिश्तों की इस जगह को मुकम्मल रूप दिया। हालांकि अकबर और जहांगीर के शासन काल में हिन्दुओं को मंदिर के पास की भूमि एक चबूतरे के रूप में सौंप दी गई थी। लेकिन फिर से क्रूर शासक औरंगजेब में अपने पूर्वज बाबर के सपनों को पूरा करते हुए यहाँ भव्य मस्जिद का निर्माण कर उसका नाम बाबरी मस्जिद रख दिया। हिंदू धर्म के मुताबिक, जीस जगह पर मस्जिद को बनाया गया था। वो भगवान राम की जन्मभूमि है। बाबरी मस्जिद में तीन गुंबद थी और हिंदू धर्म के मुताबिक इन गुंबदों के नीचे ही भगवान राम का जन्मस्थान है। साल 1853 में इस मंदिर को लेकर हिंदू मुस्लिम में सांप्रदायिक दंगे हुए और इस जगह को लेकर विवाद छिड़ने लगा। 1859 मेंअंग्रेजी सरकार ने विवादित जगह के आसपास बाड़ लगा दी। मुसलमानों को ढांचे के अंदर हिंदुओं को बाहर चबूतरे पर पूजा करने की इजाजत दी गई। इसके बाद साल 1885 में महंत रघुबर दास ने अदालत से मांग की कि चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए। ये मांग खारिज हो गयी।
साल 1949, सालों पहले इस मस्जिद को लेकर छिड़े विवाद को उस वक्त किसी तरह अंग्रेजों ने शांत कर दिया था। पर असली विवाद शुरू हुआ। साल 1949 में 23 दिसंबर 1949 को भगवान राम की मूर्तियां मस्जिद में पाई गईं। हिंदुओं का कहना था कि भगवान राम प्रकट हुए हैं जबकि मुसलमानों ने आरोप लगाया कि किसी ने रात में चुपचाप मूर्तियां वहाँ रख दी। उस समय यूपी सरकार ने मूर्तियां हटाने का आदेश दिया, लेकिन जिला मजिस्ट्रेट केके नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं को भड़काने के डर सेइस आदेश को पूरा करने में मुश्किल की तब सरकार ने इसे विवादित ढांचा मानकर ताला लगवा दिया। (राम मंदिर का इतिहास क्या है?)
साल 1950, फैज़ाबाद सिविल कोर्ट में दो अर्जी दाखिल की गई, जिसमें एक में रामलला की पूजा की इजाजत मांगी गई और दूसरे में विवादित ढांचे में भगवान राम की मूर्ति रखे रहने की इजाजत भी मांगी गई। इसके बाद साल 1959 मेंनिर्मोही अखाड़ा ने तीसरी अर्जी दाखिल की। दोस्तों निर्मोही अखाड़ा वही समुदाय है जिन्होंने सबसे पहले अयोध्या की भूमिका विवादित बताया था। साल 1961 इसके बाद यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित जगह की पोज़ीशन और मूर्ति हटाने की मांग की।
साल 1984, 1984 विश्व हिंदू परिषद ने एक कमिटी गठित की और विवादित ढांचे की जगह मंदिर बनाने की मांग की।साल 1986 यू सी पांडे की याचिका के बाद फैज़ाबाद के जिला जज केएम पांडे ने 1 फरवरी 1986 को हिन्दुओं को पूजा करने की इजाजत देते हुए ढांचे पर से ताला हटाने का आदेश दिया।
6 दिसंबर 1992 वीएचपी और शिवसेना समेत दूसरे संगठनों के लाखों कार्यकर्ताओं ने विवादित ढांचे को गिरा दिया।देशभर में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए, जिसमें 2000 से ज्यादा लोग मारे गए। रिपोर्ट के मुताबिक जब इस मस्जिद को उठाया गया तब वहाँ बहुत भीड़ थी और उस समय हाँ रहा। आदमी वहाँ पर नहीं था था। उस समय वहाँ का मंजर है। गाँधी जैसा था उस समय जय श्री राम राम लला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएंगे। एक धक्का और दो जैसे नारों से अयोध्या गूंज रही थी।हम लोग 11:50 पर मस्जिद के गुंबद पर चढ़े। करीब 4:30 बजे तक मस्जिद के तीन गुंबद गिरा दिए गए। साल 2010 इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया। साल 2011, इसके बाद साल 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
साल 2017 में उसके बाद साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने आउट ऑफ कोर्स सैटलमेंट का आह्वान किया। दोस्तों अभी तक भी इस मामले में कोर्ट का कोई भी फैसला नहीं आया था। फिर आखिर में 8 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट में।मामले को मीडिएशन के लिए भेजा गया है और मेडिएशन पैनल को आठ सप्ताहों के अंदर कार्यवाही खत्म करने को क्या?
1 अगस्त 2019 को मीडिएशन पैनल ने रिपोर्ट प्रस्तुत की लेकिन उस वक्त भी सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक मेडिएशन पैनल भी इस मैटर को नहीं सुलझा पाया और कोई फैसला नहीं दे पाया। 6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की रोजाना सुनवाई शुरू हुई। (राम मंदिर का इतिहास क्या है?)
16 अक्टूबर 2019 को अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हुई और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रिज़र्व रखा। इसके बाद आया वो दिन जिसका वर्णन भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में किया जाएगा जिसदिन 134 साल पुराने अयोध्या मंदिर मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया
9 नवंबर 2019 को।सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में है। फाइव मेंबर कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने सभी की सहमति से फैसला सुनाया। इसके तहत अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम मंदिर निर्माण के लिए दे दिए।
मस्जिद के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश दिया और इस तरह इतने सालों की कानूनी जंग के बाद।आखिर में अयोध्या में राम मंदिर बनने का फैसला आया। दोस्तों वर्तमान में ये मंदिर लगभग बनकर तैयार हो चुका है। (राम मंदिर का इतिहास क्या है?)